ज़िंदगी से थोड़ी-बहुत आस तो है,
ज़िंदगी से थोड़ी-बहुत आस तो है,
पर उतना ज़्यादा पछतावा नहीं है!
रोटी, कपड़ा, मकान है, सादगी है,
पर औरों को ख़ुश करने भर के लिए,
पास मेरे वाह्य कोई दिखावा नहीं है!
खुद को खुश रखने के लिए काफ़ी है,
मानो आत्मसंतुष्टि का नज़ारा वही है।
…. अजित कर्ण ✍️