ज़िंदगी का फ़लसफ़ा
वक़्त आया तो मोहलत न मिल पानी है
जो गुज़रता जा रहा है वक़्त बेमानी है
शहंशाह ग़रीब सबको एक राह जानी है
माटी से बनी तेरी हस्ती माटी बन जानी है
देखता खड़ा है क्या तू कौन रस्ता जानी है
शख़्सियत हर कोई मिट्टी में मिल जानी है
सब खड़े क़तार में हैं सब की एक कहानी है
देर से आये या जल्दी मौत सबको आनी है
है पुकारता हर कोई मेरी मेरी दौलत सब
एक दिन ये छोड़कर सब यहीं तो जानी है
ये रसूख़ ये रुतबा दो दिन रहे निशानी है
क्या तू लेके आया क्या चीज़ लेके जानी है