जवानी
#दिनांक:-28/2/2024
#शीर्षक:- जवानी।
शोख चंचलता जिसकी कहानी,
दहकता बदन नाम है जवानी।
नित नये हलचल समेटकर,
बनता कोई दिवाना कोई दिवानी।
मन के भाव उर्वरक बनकर,
कहीं सख्त कहीं तरल बनकर,
छुई-मुई सी अनमना तन और मन,
जल्दबाजी नवीन उम्मीद की रवानी।
सूरत मर्म बर्फ पिघलता शबाब,
कत्थई आँखें पिला दें बोतल भर शराब।
बैचेनियाँ चैन का रास्ता भूल चुकीं,
बनते बदन का नक्सा कर रहा मनमानी।
समय का मय नहीं बस भूल होने लगा है,
यौवनावस्था अपने चरम पर पहुंचने लगा है।
नींद ना आने की जिद कर बैठी,
होश कहीं दूर नजरबंद हो रोती।
ठिकाना खोजता दर-ब-दर दिल अपना,
भविष्य नहीं पर बुनता अनूठा सपना।
सर से पांव तक जोशीला उत्साहित मस्ताना,
कोहिनूर कोहराम मचाता गम होती सयानी,
आनंद का छलकता जाम सुधबुध हो गई बेगानी,
चमकती चितवन रिझाती गुलबदन जवानी ।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई