जल रहा हूँ मैं
पैरों पे अपना ख़ूने जिगर मल रहा हूँ मैं
बेहद थका हुआ हूँ मगर चल रहा हूँ मैं
शायद के हो ही जाए मुक़द्दर में रौशनी
मानिंद ए आफ़ताब ए सहर जल रहा हूँ मैं
पैरों पे अपना ख़ूने जिगर मल रहा हूँ मैं
बेहद थका हुआ हूँ मगर चल रहा हूँ मैं
शायद के हो ही जाए मुक़द्दर में रौशनी
मानिंद ए आफ़ताब ए सहर जल रहा हूँ मैं