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17 Oct 2017 · 1 min read

जलाकर दिये चाँद को भी रिझाओ

जलाकर दिये चाँद को भी रिझाओ
अमावस को पूनम के जैसा बनाओ

मिटाना अगर अन्धविश्वास जग से
दिये ज्ञान के भी दिलों में जलाओ

भले ज़िन्दगी में घिरे हो अँधेरे
उसे आस बस रोशनी की बँधाओ

बुझा देंगी ये प्यार के दीप सारे
नहीं आँधियाँ नफरतों की चलाओ

बिगाड़ेंगे ये संतुलन इस धरा का
पटाखे चलाकर धुआँ मत उड़ाओ

दिखाना उसे पहले अपना भी चेहरा
अगर आइना दूसरे को दिखाओ

तुम्हारे ही सँग कारवाँ चल पड़ेगा
मगर’अर्चना’ दो कदम तो बढ़ाओ

डॉ अर्चना गुप्ता

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