मात्र मौन
हृदय में कोई आहट हुई
लगा कदाचित हुआ आगमन
कौन कौन निरुत्तर रह गई
ओह ये मौन है
शब्द मूक हो गए व्याकरण
शून्य रह गए
अधर सिले के सिले रह गए
संवेदनाओं में भाव वह गए
सुरों को अब अभिव्यक्ति नहीं चाहिए
कंठ को अब अतिरिक्ति नहीं चाहिए
नेत्रों में कमल खिल उठे
पलकों में कम्पन मिल उठे
उर में आतुरता उतर आई
उल्लास ने भर ली अंगड़ाई
और तुझमें लीन हुई तरुनाई
ज्यों दुग्ध में नीर की हुई मिलाई
असीम आनंद इस मिलन की अनुभूति में
स्वयं की यात्रा स्वयं अस्तित्व की प्राप्ति में
हे सर्वशक्तिमान तुझमें जब पाया स्वयं को
हुई तृप्त क्षुधा स्वयं में जब पाया तुम को
लेकिन सर्वत्र मौन, उत्तर यही था कौन
मात्र मौन
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