जलधर
धरती तपती जलता अंबर,
कहाॅं खोए हो बोलो जलधर?
पलक बिछाए कृषक निहारे,
क्यूं ना अब तक आप पधारे?
सारी आस टिकी है तुम पर,
कहाॅं खोए हो बोलो जलधर?
तुम बिन सूनी नभ की छाती,
पृथ्वी पर नेह नहीं बरसाती।
तरस खाओ अब प्रणयी पर,
कहाॅं खोए हो बोलो जलधर?
अकुलाते हैं सारे प्राणी,
मौत दिख रही उन्हें बिन पानी।
क्यों रूठा है तुमसे सरवर?
कहाॅं खोए हो बोलो जलधर?
यह सावन जाए जैसे जेठ,
हुई ना अभी तक तेरी पैठ।
चिंता से सूखे हैं तरूवर,
आ भी जाओ अब प्रिये जलधर।
प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव
अलवर ( राजस्थान)