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4 Jun 2023 · 1 min read

जरा सोचिए…..

जरा सोचिए, क्या सोच पाते हैं आप आज के हालात में
बदलती हुई एकता का रूप, बढ़ती वारदात में
कहते हैं लोग, ये सब क्या हो रहा है
आजादी के सात दशकों में वतन तबाह हो रहा है
माहौल गंदा हो रहा है, दिन दहाड़े दंगा हो रहा है
प्रश्नचिन्ह राष्ट्रीयता पर लगी, अनेकता बढ़ता जा रहा है
सुबह होते गुप्ती चली, शाम को तलवारें हैं
गली द्वार चौराहों में तेजाब की बौछारें हैं
कहीं टूट रहा है मस्जिद तो कहीं मंदिर जल रहा है
बम गोला बारूद से यहां निर्दोष मर रहा है
गर, सौ करोड़ में सौ सुधरते
रोजाना हत्याओं से इतने लोग ना मरते
ना होता शोषण घूसखोरी
ना खेलते कोई खून की होली
काश, ऐसा होता ये सोचने की बात है
जरा सोचिए, क्या सोच पाते हैं आप आज के हालात में
सोचिए, जरा सोचिए

✍️_ राजेश बन्छोर “राज”
हथखोज (भिलाई), छत्तीसगढ़, 490024

Language: Hindi
1 Like · 207 Views
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