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14 May 2023 · 1 min read

*जमीनें हैँ महंगी जमीर बहुत ही सस्ते*

जमीनें हैँ महंगी जमीर बहुत ही सस्ते
******************************

जमीनें हैँ महंगी जमीर बहुत ही सस्ते,
इंसानियत के उठ गये जमीं पर बस्ते।

हर कोई बहरा सुनना चाहता न कोई,
झूठी शान ए शौक़त के क़सीदें पढ़ते।

मुरारी बने हैँ घूमें एक धुरी पर गरारी,
उल्लू कर सीधा औरों पर रहते हँसतें।

दुनिया जाए भाड़ में उनसे क्या लेना,
संकट की घड़ी में गधे को बाप कहते।

स्वार्थों से भरी हैँ इंसानों की बस्तियां,
परिंदे बंद पिंजरे मे खुला नभ तरसते।

खुदफरामोशी में हूँ किसे कहूँ अपना,
चेहरे छुपाये पतली गली से निकलते।

अलगागुजारी में तन्हाँ खड़ा मनसीरत,
संगी साथी न कोई रहें राह पर चलते।
******************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)

Language: Hindi
155 Views
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