जब हवाएँ तेरे शहर से होकर आती हैं।
कुछ खुशबुएँ साँसों को महका कर जाती हैं,
जब हवाएं तेरे शहर से होकर आती हैं।
यादों के बंद कमरों में सेंधमारी कर जाती हैं,
और सिमटे हुए दर्दों को तिनकों में बिखेर आती हैं।
इस कोरे रंग को मेरे, अतीत की रंगीन छीटें छू जाती हैं,
जाने क्यों एक बार फिर से ख्यालों को तेरी आहटें भरमाती हैं।
सब्र से सजी शामों को बेसब्री का आलम दे जाती हैं,
और एहसासों को तेरे मुझ तक लिए चली आती हैं।
तेरी गुनगुनाहट से मेरे घर को भर जाती हैं,
फिर खामोशी के कोहरे में साँसों की गति भी भूलकर आती है।
दर पे मेरे सूखे पत्तों की चादरें बिछा चली जाती हैं,
और हसीं में बीते पलों को आंसुओं में लपेट कर ले आती हैं।
ये बारिशें जाने क्यों मुझसे आंखें चुरा जाती हैं,
शायद मेरी तन्हाई की गहराईयों से ये भी घबराती हैं।
ये जुदाईयां हीं तो हैं जो, हमें एक सार कर जाती हैं,
वरना मंदिर में चढ़े फूलों की घर वापसी कहाँ हो पाती है।
दुआएँ अब ख़्वाबों की दुनिया में हीं पूरी की जाती हैं,
क्यूंकि जमींदोज़ अक्स को कोई शीशा भी कहाँ दिखा पाती है।