जब भी बात मेरे अपनों पे आएगी
जब भी बात मेरे अपनों पे आएगी
भूल के अपनी औकात
खाल उनकी भी उतारी जाएगी
जो कहते हैं खुद को
हम बुलंद है आसमां की तरह
घसीट कर उनको भी जमीं की
धूल चटाई जाएगी
मेरे नाजुक से पर को देख
भूल मत जाना
हांथी चीटी के इसारे पे
हमें नाच-नाच कर दिखलायेगी
गर बात हो इंसान होने की
मुर्दा नही जिन्दा होने की
तो आक्रोश और आवेग में
शमशीर भी उठाई जाएगी
जब भी उत्पीड़नऔर लाचारी
की बाज़ार गरम होगी
कलम से लार नही आग टपकाई जाएगी
खुल के बिरोध जताई जाएगी
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…सिद्धार्थ