जब बारिश की बूंदें, धरातल को चूमती हैं
बरसात के मौसम में,
कण-कण भींगा जाती है
बादलों की कडकडाहट,
कोई गीत सुना जाती है
चमक ऐसी क्षण के लिए
उजेला भर देती है
जब बारिश की बूंदें,
धरातल को चूमती हैं
आसमान ढखा बादलों से,
रोशनी नजर नहीं आती है
रात जैसे दिन हुए किंतु,
मौसम सुहाना कहलाती है
परवाह नहीं किसी की ,
कोई बात बताना चाहती है
जब बारिश की बूंदें,
धरातल को चूमती हैं
बारिश की बूंद-बूंद,
अपनी रास दिखाती है
सूखे धरती की,
प्यास बूझाती है
पतझड़ को बदल,
हरियाली खिल खिलाती है
जब बारिश की बूंदें,
धरातल को चूमती हैं
नन्हें पौधों से खेतों में,
हरियाली छा जाती है
माहौल बदल कर,
सुंगधों से भर देती है
नदिया, तालाब, झील , झरने
बूंद-बूंद से भर जाती है
जब बारिश की बूंदें,
धरातल को चूमती हैं.
स्वरचित
‘शेखर सागर’