जब नफरत बांटनी हो पूरी पूरी बांट दोगे
मुहब्बत के इस आंगन मे दूरी बांट दोगे
क्या जंगल लूटकर हमे बेनूरी बांट दोगे
मुहब्बत बांटने मे बड़े कंजूस हो तुम लोग
जब नफरत बांटनी हो पूरी पूरी बांट दोगे
जबरन छीनोगे पहले जायदाद पुरखों की
फिर घर घर मे हमारे मजबूरी बांट दोगे
लगवाओगे अगूंठे हवालात मे ले जाकर
बदले मे बस दो चार मजदूरी बांट दोगे
मुक्कमल कब पहुंचेगी जमाने मे बताओ
या यूहीं दास्ताँ हमारी अधूरी बांट दोगे
मारूफ आलम