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18 Mar 2020 · 1 min read

जब देखोगे तुम मेरी ऊँचाई को

छूने दौड़ोगे मेरी परछाँई को
जब देखोगे तुम मेरी ऊँचाई को

मन को तो समझा लोगे माना मैने
पर कैसे समझाओगे अँगड़ाई को

घर की दीवारों ने भी महसूस किया
इक कमरे में पलती रही जुदाई को

मोबाइल की दुनिया में खोई-खोई
देखा मैने पागल सी तरुणाई को

खुशियों के दर पर जो हरदम पलते हैं
नाटक कह देते हैं पीर पराई को

1 Like · 241 Views
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