जब तुम
जब तुम
मेरे सामने
नहीं होते
तो मेरे भीतर
होते हो
वैसे ही जैसे
कछुआ सिमट
जाता है
मुंह, हाथ, पैर
समेट कर
अपनी खोली
के भीतर,
या फिर
किसी कोटर
में चिड़िया
का बच्चा
अकेला
करता है
इंतजार
अपनी मां के
लौटने का,
या फिर
तुम बन
जाते हो
बादल
और मैं बूंद।