जननी गयी हैं मुझसे रूठ
वो चेहरा जो, शक्ति था मेरी ,
वो आवाज़ जो, थी भरती ऊर्जा मुझमें ,
वो कदम जो, साथ रहते थे हरदम,
वो आँखें जो, दिखाती रोशनी मुझको ,
वो चेहरा, ख़ुशी में मेरी हँसता था ,
वो चेहरा, दुखों में मेरे रोता था ,
वो आवाज़, सही बातें ही बतलाती ,
वो आवाज़, गलत करने पर धमकाती ,
वो ऊँगली, बढाती कर्तव्य-पथ पर ,
वो ऊँगली, भटकने से थी बचाती ,
वो कदम, निष्कंटक राह बनाते ,
वो कदम, साथ मेरे बढ़ते जाते ,
वो आँखें, सदा थी नेह बरसाती ,
वो आँखें, सदा हित ही मेरा चाहती ,
मेरे जीवन के हर पहलू, संवारें जिसने बढ़ चढ़कर ,
चुनौती झेलने का गुर, सिखाया उससे खुद लड़कर ,
संभलना जीवन में हरदम, उन्होंने मुझको सिखलाया ,
सभी के काम तुम आना, मदद कर खुद था दिखलाया ,
वो मेरे सुख थे जो सारे, सभी से नाता गया है छूट ,
वो मेरी बगिया की माली, जननी गयी हैं मुझसे रूठ ,
शालिनी कौशिक
कांधला (शामली )