जनता की घुन्दू जनता जाने
जनता की घुंडी जनता जाने
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दीदी तेरा देवर नहीं माना,
हारकर पड़ा है मुँह छिपाना।
आसमानी बिजली सी बातें,
पड़ा धरती पर मात खाना।
जनता की घुंडी जनता जाने,
चलता नहीं कोई भी बहाना।
झूठ का भी होता है समापन,
सच्चाई जान जाता जमाना।
जनार्दन से ऊपर शक्ति नहीं,
तोल कर बोलो बन सियाना।
जनभक्ति से बडी शक्ति नहीं,
जन को पड़ता है समझाना।
मनसीरत जन की रग पकड़े,
जनसेवा का मिले नजराना।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)