जज हूँ निर्लज्ज हूँ / musafir baitha
जैसे सब जनमते हैं
जन्मा हूँ
चूंकि बामनी पेट से जन्मा हूँ
ऐंठ अलग है अपनी
वर्णाश्रम सेवी जज हूँ
निर्लज्ज हूँ
जो तू बाभन बभनी जाया
आन बाट से क्यों नहीं आया
कबीर का यह आमद सरल प्रश्न
कानूनी क़िताब पढ़ पढ़ मुझ मुए से
कतई न सुलझ पाया
क्योंकि
वाया पूर्व जन्म की सुकर्म-कृपा
बन गया बेपेंदी का जज हूँ
निर्लज्ज हूँ
पढ़ा गीता मनुसंहिता
बना तुलसीदास का पटु शिष्य
तब भी
बन गया लोकतंत्र में जज हूँ
निर्लज्ज हूँ
अपनी जात पंचायत में जाता हूँ
बामन श्रेष्ठता राग गा आता हूँ
पॉजिशन अपनी न्यायी पेशे का
मौके पर बिसर जाता हूँ
जज हूँ
निर्लज्ज हूँ
संविधान की खाता हूं जो बाबा साहेब के मस्तिष्क की उपज है
पर गाता हूँ मनु की किताब की
संविधान विहित भावना की धज्जी उड़ाता हूँ
है साफ़
आईने में अक्स की तरह…
जज हूँ
निर्लज्ज हूँ।