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29 Jul 2020 · 1 min read

जग में कुछ कर जाओ तुम

आदित्य उदय पूरब में
तन्द्रा तिमिर हटाओ तुम
सूरज सुमन से ऊर्जा ले
स्फूर्ति मय हो जाओ तुम।

मुस्करा के हर कली
आतुर कुसुम बनने को है
भँवरे खग तितलियों सा
कर्म में लग जाओ तुम।

पर कंटकों के सर छिपे हैं
हर कली की गोद में
सुख की अभिलाषा कल्पना
यह मर्म समझ जाओ तुम।

ज्ञान विवेक सभ्यता और
संस्कृति का समत्व कर के
परोपकार मार्ग पर चल
जग में कुछ कर जाओ तुम।

शून्य में बिलीन होओ
पूर्व उससे मृत्यलोकी
जीवन भर लेते रहे हो
कुछ तो लौटा जाओ तुम।

Language: Hindi
4 Likes · 7 Comments · 389 Views
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