#जंगली फर (चार)….
# जंगली फर ….
लो आया मैं लेकर ,
साथी तेरे लिए ,
थोड़ा थोड़ा सा ,
जंगल का प्यार …!
गदराई , रसभरी
अपनी जवानी ,
लुटाने आई ये ,
गुच्छे गुच्छेदार …!
भरी तपिश में ,
राहत बनकर ,
बन के आई बहार
तेंदू , महुआ , चार …!
जंगल में वनवासी के ,
ये हैं उसके जीवन बीज
देता रहे सदा अपने का ,
कई पुरखो से जीवन सींच…!
चिन्ता नेताम ” मन ”
डोंगरगांव (छत्तीसगढ़)