जंगलराज
कोयल डाली डाली कुहुके,
जब कौवे काँव काँव करें।
मेंढक की टर्र टर्र सुनकरके,
विषधर धीरे से पाँव धरे।
गंगा तट पर बगुले देखो,
एक टांग खड़े ध्यान लगा।
होती शिकार कमजोर मछलियाँ,
मर जाती हैं न्याय बिना।
चील बाज चीते सियार सब,
घेर रहे हैं गायों को।
ताड़ों के तरु भी अब देखो,
बाँट रहे है छाओं को।
जब सज्जन जिराफ खड़े,
गर्दन उठाके सीधे चलते।
तब रक्तमुँह जंगल कुत्ते,
हैं पूँछ पकड़ धावा करते।
जो बोझ ढो लेते अपनी,
निशठ पतली टांगों पर।
उन सुन्दर हिरनों को भेड़िये,
काट डालते जांघों पर।
बन रक्षक तैयार खड़े सब,
राजा शेर की रक्षा में।
जिसका चाहे शिकार करें,
अपनी जंगल की कक्षा में।
वन संसद भी भरा हुआ हैं,
सामिषों की टोली से।
न्यायों की गुहार दब जाती,
बब्बर शेर की बोली से।
जंगल का हैं नियम पुराना,
जिसकी लाठी उसकी भैंस।
जिसमें छल बल कूटनीति है,
झांसा दे करता है ऐस।।
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अशोक शर्मा, कुशीनगर,उ.प्र.
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