छोटे कपड़े नहीं छोटी सोच होती है
हर व्यक्ति को हमेशा ही अपनी सोच सकारात्मक रखने की आवश्यकता है, जैसे जैसे जमाना बदल रहा है, वैसे वैसे पहनावे में भी फर्क आ रहा है । समाज में इधर तो हम यह बात करते हैं कि जमाने के साथ साथ चलना चाहिए । फिर कपड़ों के पहनावे के संबंध में छोटी सोच क्यो रखना । हर घर में माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को जन्म होने के बाद प्रारंभ से ही यदि सुसंस्कृत संस्कार देने की कोशिश की जाएगी, तो अवश्य ही समाज में बदलाव आयेगा । वो कहते है न हम दिल में कुछ करने की ठान लें तो क्या नहीं कर सकते एवं प्रसिद्ध कवि श्री सोहनलाल द्विवेदी जी की पंक्तियां हैं, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती । दूसरे रूप में यह भी सही है कि माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को यह समझाया जाना चाहिए कि वे कपड़े सादगी एवं सलीके से पहने तथा साथ ही साथ यह भी सीख दे कि विदेशों के कपड़ों की देखा-देखी करने में अश्लील कपड़े नहीं पहने । अपने भारत देश की अस्मिता एवं सभ्यता का भी मान रखें ।