छोटू
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एक लड़की थी उसका नाम मीनू था। वह बहुत ही दयालु और उदार थी। वह हर किसी की मदद करने के लिए सदैव तत्पर रहती थी। उसके घर में एक नौकरानी थी उसका एक बेटा था। मीनू उसके साथ खेला करती थी। धीरे-धीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो गई। मीनू उसे प्यार से छोटू बुलाया करती थी। वह रोज रात में देखती कि छोटू देर रात तक अपने घर के सामने जल रही लैम्प पोस्ट के नीचे बैठकर पढ़ता था। पर परेशान सा कभी इस पुस्तक को उलटता कभी उस पुस्तक को पलटता। मीनू को समझते देर ना लगी। उसके मन में पढ़ाई के प्रति लगन और उत्साह देखकर मीनू ने उसे पढ़ाने को सोची। दूसरे दिन मीनू ने उसे अपनी कुछ किताबें लाने को कहा और मीनू भी कुछ अंग्रेजी की पुस्तकें ले आई। छोटू को तो आनंद का ठिकाना ना रहा वह मीनू को धन्यवाद कहने लगा। अब मीनू को जब भी खाली समय मिलता उसे घंटा दो घंटा पढ़ा देती थी। कुछ ही दिनों में छोटू का हर विषय पर अच्छी पकड़ हो गई, वह फर्राटे से अंग्रेजी बोलने लगा, और गणित में भी मीनू गलती कर जाती थी पर वह नहीं।मीनू भी बहुत खुश होती उसका मेहनत रंग ला रहा है। पर कुछ समय के बाद अचानक एक दिन छोटू की माँ उसे लेकर कहीं चली गई। मीनू को छोटू की बहुत याद आती थी। कई साल बीत गए। मीनू का विवाह हो गया। वह अपनी गृहस्थी में रम जाती है पर कभी-कभी छोटू का ख्याल आ ही जाता था। एक दिन अचानक दरवाजे पर कोई असमय ही दस्तक देता है। वह बरबराते हुए इस समय कौन होगा। सामने शूट-बूट पहना हुआ एक सभ्य आदमी खड़ा था। उसके चेहरे पर शालीनता साफ झलक रही थी। मीनू के दरवाजा खोलते ही उसने मीनू के पाँव छूये और कहा दीदी मुझे पहचानी नहीं मैं आप का छोटू। आप तो बिल्कुल नहीं बदली आज भी वैसी ही है, दीदी मैं अपनी पहली वेतन से आप के लिए एक छोटा – सा तोहफा लाया हूँ। यह कहते हुए अपने कोट के पाकेट से एक हीरे-मोती से जड़ा हुआ हार निकाल कर मीनू के गले में पहना देता है। आप की वजह से मैं आज आई. ए. एस. के पोस्ट पर कार्य रत हूँ। दीदी आप का ये अहसान मैं कभी कैसे भूल सकता हूँ। मीनू बिलखते हुए छोटू के गले लग जाती है। उसकी आँखों से खुशी के आंसू भर आते। जिस छोटू को वह वर्षों से ढ़ूढ़ रही थी वह वापस ऐसे मिलेगा उसे उम्मीद ही नहीं थी।
????-लक्ष्मी सिंह ?☺