*छूकर मुझको प्रभो पतित में, पावनता को भर दो (गीत)*
छूकर मुझको प्रभो पतित में, पावनता को भर दो (गीत)
_______________________
छूकर मुझको प्रभो पतित में, पावनता को भर दो
1)
सदियॉं बीतीं बार-बार मैं, द्वार तुम्हारे आया
ऑंखें मूॅंदी ध्यान तुम्हारा, प्रभु दिन-रात लगाया
असफल यत्न किया अब तक अब, मेरे स्वर में स्वर दो
2)
बिना तुम्हारे संस्पर्श के, शतदल कमल न खिलता
जन्म-मृत्यु के सौ प्रश्नों का, उत्तर एक न मिलता
इस नश्वर तन के भीतर की, मुझको तान अमर दो
3)
कहॉं तुम्हें ढूॅंढ़ूॅं मैं प्रभु जी, कैसे तुम्हें रिझाऊॅं
स्वर्ण-रजत सबके मलिक तुम, क्या मैं वस्तु चढ़ाऊॅं
अब तक उठा अहंकारी सिर, काट धरा पर धर दो
छूकर मुझको प्रभो पतित में, पावनता को भर दो
———————————–
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451