Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Feb 2017 · 2 min read

***छुआ-छूत का अंत ***

छुआ-छूत का अंत
#दिनेश एल० “जैहिंद”

सोनहो गाँव में हर जाति के लोग रहते हैं, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र | शुद्र जातियों में डोम, चमार, दुसाद आदि हैं |
वर्षों बीत गए, पर इस गाँव से छुआ-छूत और भेद-भाव की जातिगत बीमारी का अब तक अंत न हो सका |
आए दिन छुआ-छूत व भेद-भाव की कोई न कोई घटना घटती रहती हैं |
एक बार ऐसी ही घटना घट गई, कोहराम मच गया |
एक सज्जन जो लोहार जाति से थे, पांत में सभी लोगों के संग खाने को बैठे, पत्तल बँट चुकी थी, गिलास भी चल चुका था, एक व्यक्ति जो पानी का जग लिए घूम रहा था, लगातार पानी चलाए जा रहा था, जैसे ही उस सज्जन के पास पहुँचा, उसने उसे देखा और देखते ही भड़क उठा —- ” ह्हें ! मैं भोजन नहीं करूँगा|
आप लोग नीच जाति के लोगों के हाथों पानी चलवा रहे है, पता नहीं भोजन भी परोसवा रहे होंगे |”
इतना कहते हुए वह सज्जन व्यक्ति उठ पड़ा | चिल्लाने लगा — “वाह, आप लोग भोजन करवा रहे हैं या हमारी जाति-धर्म नाश रहे हैं ! साफ-सफाई का कोई ध्यान ही नहीं |”
भोजन करवाने वालों में से दो-चार के साथ बातचीत चल ही रही थी कि शोर सुनकर जगकर्ता महोदय वहाँ पहुँच गए और बात को संभालने की कोशिश की, पर बात बनी नहीं |
तभी वहाँ उस पंचायत के नव निर्वाचित मुखिया महोदय पहुँच गए अपने दल-बल के साथ, जो जाति से ब्राह्मण थे और विवाह समारोह में आमंत्रित थे |
उन्होंने उस सज्जन को समझाया-बुझाया, फिर अपने साथ पांत में बैठाया और अपनी जाति और हिंदु-धर्म का हवाला देकर भोजन ग्रहण करने को कहा, वह लोहार सज्जन मान गया |
पानी चलाने वाला वही व्यक्ति था | परिस्थितियाँ अब सामान्य हो चुकीं और खाते-खाते वह सज्जन सोचने लगा कि,
“हिंदु-धर्म के सर्व श्रेष्ठ होकर हमारे मुखिया जी जब छुआ-छूत को नहीं मानते हैं तो फिर मैं क्यूँ……. !!!”
इस घटना का कमाल देखिए,…….
उस गाँव से छुआ-छूत व भेद-भाव का सदा के लिए नामो निशां मिट गया |

°°°°°

Language: Hindi
552 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मन
मन
Neelam Sharma
तौबा ! कैसा यह रिवाज
तौबा ! कैसा यह रिवाज
ओनिका सेतिया 'अनु '
सोच
सोच
Neeraj Agarwal
Unki julfo ki ghata bhi  shadid takat rakhti h
Unki julfo ki ghata bhi shadid takat rakhti h
Sakshi Tripathi
तुझमें : मैं
तुझमें : मैं
Dr.Pratibha Prakash
मन-गगन!
मन-गगन!
Priya princess panwar
साहित्य सृजन .....
साहित्य सृजन .....
Awadhesh Kumar Singh
दीप शिखा सी जले जिंदगी
दीप शिखा सी जले जिंदगी
Suryakant Dwivedi
*परियों से  भी प्यारी बेटी*
*परियों से भी प्यारी बेटी*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
■ बेबी नज़्म...
■ बेबी नज़्म...
*Author प्रणय प्रभात*
तुझको को खो कर मैंने खुद को पा लिया है।
तुझको को खो कर मैंने खुद को पा लिया है।
Vishvendra arya
शोषण
शोषण
साहिल
सुख दुःख मनुष्य का मानस पुत्र।
सुख दुःख मनुष्य का मानस पुत्र।
लक्ष्मी सिंह
कभी ना अपने लिए जीया मैं…..
कभी ना अपने लिए जीया मैं…..
AVINASH (Avi...) MEHRA
थक गई हूं
थक गई हूं
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
कुछ ना करना , कुछ करने से बहुत महंगा हैं
कुछ ना करना , कुछ करने से बहुत महंगा हैं
Jitendra Chhonkar
// जय श्रीराम //
// जय श्रीराम //
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
ਮੁੜ ਆ ਸੱਜਣਾ
ਮੁੜ ਆ ਸੱਜਣਾ
Surinder blackpen
"चलना और रुकना"
Dr. Kishan tandon kranti
मुस्कुराहटे जैसे छीन सी गई है
मुस्कुराहटे जैसे छीन सी गई है
Harminder Kaur
लक्ष्य
लक्ष्य
Suraj Mehra
मेरे शब्द, मेरी कविता, मेरे गजल, मेरी ज़िन्दगी का अभिमान हो तुम।
मेरे शब्द, मेरी कविता, मेरे गजल, मेरी ज़िन्दगी का अभिमान हो तुम।
Anand Kumar
*सुकुं का झरना*... ( 19 of 25 )
*सुकुं का झरना*... ( 19 of 25 )
Kshma Urmila
संस्कृति के रक्षक
संस्कृति के रक्षक
Dr. Pradeep Kumar Sharma
मै शहर में गाँव खोजता रह गया   ।
मै शहर में गाँव खोजता रह गया ।
CA Amit Kumar
“ आहाँ नीक, जग नीक”
“ आहाँ नीक, जग नीक”
DrLakshman Jha Parimal
बुझे अलाव की
बुझे अलाव की
Atul "Krishn"
3148.*पूर्णिका*
3148.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
थोड़ा सा मुस्करा दो
थोड़ा सा मुस्करा दो
Satish Srijan
*नेत्रदान-संकल्प (गीत)*
*नेत्रदान-संकल्प (गीत)*
Ravi Prakash
Loading...