तुझमें : मैं
लोक में त्रिलोक में, मैं ही धरा आलोक में
प्रसन्नता पर्याय मैं ही, मैं ही कारण शोक में
पूजा दया और दान में, मैं करुणा के सार में
समस्त विकारों से विरक्त, मैं नष्ट अहंकार में।।
सृजन हो ललित कलाएं, मैं ही तो अन्वेष में
क्षुद्र में क्षीर में, मैं ही तो दृष्टि क्षणिक आवेश में
मैं अटल अविरल प्रवाह, मैं तेरे हर एहसास में
मैं पूजा साधना उपासना, मैं ही तेरे विश्वास में
दृष्टि में वृष्टि में, कण कण बसा मैं ही सृष्टि में
रोम रोम तेरे बसा, तन,रक्त मज्जा वेश में
हर ग्रंथ में हर शब्द में, श्लोक और हर मंत्र में
गर्भ में जन्म में भी, मैं ही तो सत्य तेरे अंत में
लक्ष्य मैं मार्ग मैं, उपलब्धि शीर्ष शिखर में
मैं प्रज्ज्वल ज्ञान प्रदीप्त, मैं ज्वालपुंज प्रखर में
जीव में निर्जीव में, सकल सृष्टि अस्तित्व में
में बोध में कैवल्य में, हर तंत्र विद्या तत्व में
तू रचना उत्कृष्ट मेरी, हूँ तेरा रचनाकार मैं
तेरे त्याग में सोच में, मैं ही तेरे आहार में
संयोग में वियोग में, मैं भाव प्रेम आयाम में
मैं व्यवहार वाणी तरल, मैं ही तेरा परिणाम में