छुपे भेंडिए उनके किरदार में
——–ग़ज़ल——–
122-122-122-12
1-
चली ये हवा कैसी संसार में
सभी गुल बदलने लगे ख़ार में
2-
वही वादियाँ अब सहम सी गयीं
जो कल तक थीं मशहूर अख़बार में
3-
उसे ख़्याल मेरा जरा भी नहीं
मैं शब-दिन तड़पता था बेकार में
4-
जिन्हे हम समझते मुहाफ़िज़ यहाँ
छुपे भेंड़िए उनके क़िरदार में
5-
करूँ क्यूँ न उसकी अभी बंदगी
मुझे दिख रहा रब है दिलदार में
6-
सँभालों ऐ “प्रीतम” मेरे नाख़ुदा
फँसी आज क़श्ती है मझधार में
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प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)