छिपे दुश्मन
आइने के पीछे , छिपे हुए साये कुछ हैं
मेरे बारे में रहते बतलाते इंसान कुछ हैं
सब इनको पता है मेरे दिमाग़ का
खोज ही लिया है ठिकाना, मकान का
चालें हैं विषभरी , शातिर इरादे हैं
जाल है बुना हुआ है एक महीन तार का
देखते हैं ले के दूरबीन भी तो ये
चौकसी हर समय न फ़र्क़ दिन रात का
शक्लें है बदल रहे हर कदम पर ये
किसका भरोसा, विश्वास किस बात का
तहख़ाने में रखे हुए हैं कुछ यंत्र भी
करते मुझे नियंत्रित, अंधेरा होता जो रात का
एक चक्र व्यूह रच रहे दिन और रात को
फँसा हूँ मैं , मेरे चारों तरफ़ है एक जंजाल सा
करते हैं शिनाख्त बनाकर कुछ निशान
नक़्शा भी है बना रहे मेरे मकान का
सारे रिश्तेदारों के नाम का इन्हें पता
सबको करते कंट्रोल लड़वा देते हैं ख़ामख़ां
सबको डरा रहे जाकर यहाँ आस पास
लेटर भी डलवा रहे हैं बिना नाम का
एक इंजेक्शन लगा देते हैं दूर से
होश नहीं रहता न पता सुबह शाम का