कहीं दूर चले आए हैं घर से
थोड़ा दिन और रुका जाता.......
आँसू बरसे उस तरफ, इधर शुष्क थे नेत्र।
तेरा मेरा वो मिलन अब है कहानी की तरह।
मुफ्त राशन के नाम पर गरीबी छिपा रहे
कड़वा बोलने वालो से सहद नहीं बिकता
किताबों की कीमत हीरे जवाहरात से भी ज्यादा हैं क्योंकि जवाहरा
नेता जी को याद आ रहा फिर से टिकट दोबारा- हास्य व्यंग्य रचनाकार अरविंद भारद्वाज
वैसे तो चाय पीने का मुझे कोई शौक नहीं
कभी खुश भी हो जाते हैं हम
वक्त के थपेड़ो ने जीना सीखा दिया
मेरा दायित्व बड़ा है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
जब किसान के बेटे को गोबर में बदबू आने लग जाए
ग़ज़ल(नाम जब से तुम्हारा बरण कर लिया)