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26 Apr 2024 · 1 min read

विस्मरण

जब चाह नहीं थी जीने की
तब तुमने अमृत पिला दिया

मर चुकी थी हर इच्छा मेरी
सब आशाएं हत्प्राण हुई
अंतर की उमंगे शून्य हुई
तन की ऊर्जा मृतप्राण हुई

जीवन मृत हो चुका था जब सारा
क्यों तुमने आकर जिला दिया

क्यों इस स्पंदन हो रहा देह में
मुझको यह कौतूहल है
सांसों का आवागमन रुके
मिलता ना कोई इसका हल है

विस्मरण की एक अपेक्षा थी
सुधियों से फिर क्यों मिला दिया

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