छिपा गई जिंदगी
*राज जिंदगी का यूं हमसे छिपा गयी जिंदगी,
सरे राह महफ़िल में यूं मूर्ख बना गयी जिंदगी।
देखते रहे हम अपनी मौत का तमाशा,
मालूम नहीं हमको, किस जन्म का हिसाब लगा गयी जिंदगी।
राज जिंदगी………………
ढूंढते रहे हम रिश्तों की अहमियत यहां वहां,
भटके मुसाफ़िर बनके पता न हमें कहां-कहां,
राह चलती तस्वीरों ने छेड़ा हमें हर-कदम,
मालूम नहीं कैसे-कैसे कयास लगा गयी जिंदगी।
राज जिंदगी…………
कुछ खट्टे-कुछ मीठे रिस्तों की नुमाइशें मिलीं,
दरियादिली की कहीं नहीं मंजिलें मिलीं ।
उदासी का मंज़र,तो कहीं मायूसी मिली,
मालूम नहीं कैसे-कैसे प्रयास गवां गयी जिंदगी।।
राज जिंदगी …………..