*छाया कैसा नशा है कैसा ये जादू*
छाया कैसा नशा है कैसा ये जादू
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छाया कैसा नशा है कैसा ये जादू,
मदहोशी मे रहा ना दिल पर काबू।
जुल्फों की छाँव ने जड़ से समेटा,
दिल की धडकने हो रही हैँ बेकाबू।
लटे गेसुओं की बड़ी कुंडली भरी हैँ,
गोरे गालों पर बिखेरे जैसे हों टापू।
मोटे मोटे नयन जैसे पीतल कटोरे,
नीले नैनों से टपकें बरसाती आँसू।
मनसीरत साँवरिया ख्वाब में खोया,
कानन में मोर के जैसे मै झूमूँ नाचूँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)