“छत का आलम”
“छत का आलम”
सर्दी में सब भागते धूप की ओर
छत का अपना ही आलम होता है
चटाई बिछाकर लेट जाते चैन से
छोटा बच्चा तो मस्ती से सोता है,
मशीन में चाहे कपड़े रोज सुख लो
धूप में सूखाने से कपड़ा खिलता है
दाल, चावल चाहे कोई अनाज ले लो
सुख कर धूप में बखूबी निखरता है,
शहरों में घर हुए घुटन घुटन वाले
छत पर जाकर ही सुकून मिलता है
रानू, रोमी चलाते हैं साईकिल मज़े में
राज बैठकर मूंगफली, संतरे खाता है,
मीनू को पसंद छत पर सुबह टहलना
अरुणोदय से मन प्रफुल्लित होता है
कबूतर आते दाना पानी खाने छत पर
मोर अपना सुन्दर नृत्य हमें दिखाता है।