छंद
आज चौदह अगस्त का , दिवस वह काला।
टुकड़े टुकड़े हिन्द को,कभी कर डाला।
पर्व आया आजादी,डूबा उजाला।
सत्ता के लिये ही तो , विघ्न कर डाला।
जल्दबाज़ी भीक्या थी ,तनिक रुक जाते।
खण्डित भारत की जगह , फिर देश पाते।
बंटवारे में शवो के , ढेर रुक जाते ,
काश कि जवाहर जिन्ना ,
स्वार्थ न दिखाते ।
*कलम घिसाई राधिका छंद आधारित