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16 May 2024 · 1 min read

छंद मुक्त कविता : विघटन

बुद्धि का उजास
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
विकास की होड़ में
नित्य नए तथ्यों का अविष्कार
फिसलती सीढ़ियों में
सत्य से झूठ का परिष्कार ।
हृदय की भूलभुलैया में
चक्कर काटता अहंकार
जन संख्या की भीड़ में
दिन रात बदलता आकार ।
विगत धुंधलकों में
घुला मिला सा मूर्छित आभास
पारदर्शी शीशों से
झांकता बुद्धि का उजास ।
आतुर घूमती खामोशी में
निस्तब्धता का स्पंदन
आँखों की भाषा में
करुणा का क्रंदन ।
जन- जन का जीवन
मानस की कविता
शब्द दर शब्द
पीड़ा की निस्तब्धता ।।

सुशीला जोशी
9719260777

20 Views
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