#छंद कुंडलियाँ
#छंद कुंडलियाँ
तरुवर देख शिरीष का, फल जिद्दी लाचार।
नव फल धक्का मार कर, देते पतझड़ प्यार।।
देते पतझड़ प्यार, बुरे नव फिर भी बनते।
बूढ़े समझें बात, तभी नव पर हैं तनते।।
सुन प्रीतम की बात, जलज नदिया फिर सरवर।
बीज पेड़ फल दौर, महा सेवक तब तरुवर।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’