*चौदह अगस्त 【गीतिका】*
चौदह अगस्त 【गीतिका】
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
(1)
चौदह अगस्त को मंथन से निकला सिर्फ हलाहल था
अब इसमें संशय कैसा जो हुआ सरासर वह छल था
(2)
आजादी तो मिली छद्म थी ,पर बँटवारा था असली
जान बचाते बदहवास-जन गीला मॉं का ऑंचल था
(3)
हमें अल्पसंख्यक कब माना कहाँ मिला था संरक्षण
वही पुराना ढर्रा अब भी है सब कुछ जो भी कल था
(4)
भागा आया जैसे-तैसे जिस ने जान बचाई थी
पिसा-मरा बर्बाद हो गया बँटवारे से दुर्बल था
(5)
जिनके पुरखे बँटवारे के समय भाग कर आए थे
करते-करते याद अभी भी उनकी आँखों में जल था
(6)
खाली हाथ रहे शरणार्थी-जैसे जो जन दशकों तक
कैसे मानूँ उस क्षण में उनका भविष्य कुछ उज्ज्वल था
(7)
बँटवारे के समय अभागों का दुर्भाग्य नहीं पूछो
सदियों के जैसे पहाड़ का लंबा वह हर क्षण-पल था
————————————————-
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451