चेतनता
“चेतना”
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जीवन का सार यही है,सुख है भार नहीं है।
प्रेम जगा मस्ती में चल,करनी रार नहीं है।
प्रारब्ध सदा संग चले,इतना ध्यान रहेगा,
तब चेतनता जाग गई,समझो हार नहीं है।
प्रबल वेग से चलना है,नव जग में करना है।
लेकर क्या देकर जाना,सबका मन हरना है।
प्रकृति यही बात सिखाती,ये उत्सुकता आए,
तब चेतनता जाग गई,मौज़ों में ढ़लना है।
जब मन को जीता जाए,साहस बढ़ता आए।
क़दमों में बिजली दौड़े,हर मंज़र मन भाए।
संभव हर इक कार्य लगे,डर मन से दूर भगे,
तब चेतनता जाग गई,अब जग जीता जाए।
हर कोई प्यारा लगता,भेद नहीं मन जगता।
रंग-बिरंगे फूल सभी,हमसे गुलशन खिलता।
महक बिखेरें अपनी हम,ख़ुशियाँ नाचे छमछम,
तब चेतनता जाग गई,सच का सूर्य निकलता।
–आर.एस.प्रीतम
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