चेतक (सुमेरू छंद)
चेतक
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चला चेतक हवा से, बात करते।
पड़े जो टाप बैरी, तुरत मरते।
दिया गाड़े समय में, साथ ऐसा।
नहीं घोड़ा बना था भ्रात जैसा।
अचानक सामने नाला दिखाया
करेंगे पार कैसे प्रश्न आया ।
जहाँ राणा फिकर मन में समाई ।
तभी चेतक खड़ा उस पार भाई।
अनेकों युद्ध जीते बाज चेतक।
रखी है आज तूने लाज चेतक
तुझे सौ सौ नमन है धन्य चेतक ।
नहीं तुझसा जहाँ में अन्य चेतक।
युगों तक नाम तेरा देश छाये।
कहानी वीर की इतिहास गाये।
बनो तो देश के हेतक बनो रे।
बनो मत आदमी चेतक बनो रे।
सुमेरू छंद 19 मात्राएँ
12/7 या 10/9 पर यति
आदि लघु अंत में यगण,
अंत में तगण,रगण,जगण, मगण का निषेध है।
पहली आठवीं और पंद्रहवीं मात्रा लघु होगी।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
23/6/23