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6 Apr 2019 · 4 min read

मौसम-ए-चुनाव

नमस्कार आप सभी को।
बहुत दिन हुए आपसे बात नहीं हुई मैं एक बार फिर से उपस्थित हूँ आप सभी के मध्य शरीर के मध्य भाग से मन नहीं हृदय की बात करने।आप से बात करना अच्छा लगता है इसलिए चला आता हूँ आपके बीच।आप लोगों ने मुझे बहुत प्यार दिया है आभार हृदय से अपनी अंतिम सांस तक।
मौसम-ए-चुनाव के इस दिव्य वातावरण में मेरा एक छोटा सा यत्न आपकी ओर
भारत में चुनाव मतलब तनाव।जितने उपस्थित दल उतने प्रकार के छल।लोकतंत्र के इस मंदिर में चुनाव रुपी पूजा में अगर किसी की बलि दी जाती है तो उसके लिए सबसे उपयुक्त “बलि का बकरा”जनता है।कहते हैं”जनता जनार्दन है।”क्या “जनार्दन”की भी बलि दी जा सकती है?बिल्कुल नहीं लेकिन ऐसी कुर्बानी तो भारतीय जनता की हर चुनाव में दी जाती है।जनता को आस है और नेता को पूर्ण विश्वास है कि जनता उसका “बाल भी बांका”नहीं कर सकती है।आखिर धारण जो कराते हैं हम चुनाव के इस महायज्ञ से ऐसी”शक्ति”।सत्ता की असीम”महाशक्ति”।और शक्तिहीन बनकर इनके शोषण का पालन-पोषण करते हैं।हमारी मानसिक दासता की कोई चरम सीमा नहीं है और सीमा पर मौजूद जवानों की शहादत का कोई चरम नहीं है।जिन्हें हम चुनते हैं वो हमारी ही नहीं सुनते हैं इस बिमारी को”कान पर जूं ना रेंगना”के नाम से जाना जाता है आप भी जानते होंगे।और राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों विशेष कर”विजयी उम्मीदवारों”में यह बिमारी बहुतायत मात्रा में पायी जाती है।भारत में चुनाव होना एक आम बात है बात तो तब खास हो जाती है जब एक भी दल”दूध का धुला”नहीं मिलता है।ऐसी ईमानदारी की विलक्षण प्रतिभा हमें केवल भारतवर्ष में ही देखने को मिलती है।चुनाव तो विभिन्न देशों में होते हैं लेकिन”लोकतंत्र का बलात्कार”तो केवल भारत के इस विशाल प्रजातांत्रिक देश को अद्भुत बनाता है।इसी कारण कहा गया है” इनक्रिडीबल इंडिया”(अकल्पनीय भारत)।यही गुण हमें अन्य से भिन्न करता है।चुनाव के मध्य हर पार्टी अपना ऐजेंडा(कार्यक्रम)लाती है और विकास की गंगा बहाने को आतुर हो जाती है देश समझ नहीं पाता है कि वास्तव में कौन”विकास का सच्चा भागीरथी”है?समस्या यहाँ समाप्त हो जाती तो कोई बात नहीं थी लेकिन समझना आवश्यक हो जाता है कि समस्या यहाँ से आरंभ होती है।आप विकास की प्रतीक्षा में आराम से अपशब्दों कख प्रयोग कर अपने घर से घर के बाहर विकास देखना चाहते हैं और होना भी चाहिए।क्या?विकास।हाँ,विकास की ही तो बात कर रहा हूँ अब आपको समझना पड़ेगा कि आपका अपना”विजयी प्रत्याशी” “कान पर जूं ना रेंगना”नामक बिमारी से पिड़ित है ऐसे स्थिति में आप उससे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद करते हैं तो आप अपने आप के साथ धोखा कर रहे हैं और दोषारोपण उस”बिमार प्रत्याशी”पर धोखेबाज होने का आरोप लगा रहें हैं।अब आप मुझे एक बात बताइए कि “आप”मानसिक रूप से बिमार हैं या “प्रत्याशी”।सवाल गंभीर है सोच समझ कर।जवाब दिजीयेगा जनाब।चुनाव जनता के विकास के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक दलों के विकास के लिए कराया जाता है और हम आप इसे अपना मान लेते हैं यही हमारी सबसे बड़ी”बिमारी”है।इससे हमें निकलना पड़ेगा और उस”मानसिक गुलामी”को बदलना पड़ेगा।
ना कोई दल मेरा है ना कोई दल तेरा है
हमको जो दलदल में डाले,दल वो डेरा है।
चुनाव से बचा भी नहीं जा सकता और चुनाव का”कड़वा फल”चखा भी नहीं जा सकता।फिर आप क्या करें?सवाल खड़ा करके मैं यहाँ से जा नहीं सकता मुझे जवाब देना होगा।हमें दलों और दलों के प्रत्याशियों का मापदंड निर्धारित करना होगा।ऐजेंडा(कार्यक्रम)को किसी भी स्थिति में लागू करने के लिए न्यायालय की शरण में जाना होगा और मानहानि का दावा पेश करना होगा।जनप्रतिनिधियों के कार्यों का उचित आंकलन करना होगा तथा उसे अपनी वचनबद्धता का स्मरण कराना होगा।ऐसा न करने पर प्रत्याशी ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण दल का पूर्ण रूप में परित्याग करना होगा।चुनाव में दिये जाने वाले प्रलोभनों का बलिदान देना होगा।प्रत्याशी के व्यक्तित्व का आंकलन चुनाव पूर्व करना तथा उसका संबंध किस दल से है समझना होगा।कार्य इतना आसान नहीं है।धैर्य चाहिए, संयम चाहिए, जुझारूपन चाहिए, सहनशक्ति चाहिए, कर्मठता चाहिए और दृढ़ निश्चय चाहिए दृढ़ संकल्प चाहिए और सबसे आवश्यक आपके समय का बलिदान चाहिए।और यह सब आपके पास नहीं है तो कृपया कर रहने दें और विकास की इस “प्रदूषित गंगा”को बहने दें।यदि आप बदलाव नहीं ला सकते हैं तो आपको टिका टिप्पणी करने का दशमलव एक(0.1)प्रतिशत भी अधिकार नहीं है।फिर मत बोलिएगा की देश बदलता नहीं।आप समय नहीं निकाल सकते हैं तो वे आपको”मक्खी”की तरह निकाल सकते हैं।
सोच लिजिए क्या करना है?
देश आपका है किसी के बाप का नहीं।
अपनी वाणी को विराम देते हुए मुझे दुष्यंत कुमार की वो पंक्तियाँ याद आती हैं।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत हर हाल में बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में हो या हो तेरे सीने में कहीं भी हो मगर ये आग जलनी चाहिए।
जय हिंद
चलता हूँ।
अपना खयाल रखिएगा।
बोलना पड़ेगा सावधान इंडिया की तरह
सतर्क रहें, सावधान रहें, सुरक्षित रहें।
अब जाग जाइए कृपा निधान
आप सुन रहे हैं मेरी जबान-ये आदित्य की ही कलम है श्रीमान।
मेरी कविता “दौर-ए-इलेक्शन”जरूर पढ़ें है।
स्वयं की कलम से
आपका ही अपना आदित्य
आप सभी का पुनः धन्यवाद मुझे ध्यान से सुनने के लिए।

पूर्णतः मौलिक स्वरचित लेख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.

Language: Hindi
Tag: लेख
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