चुनरी केशरिया
हर्षित होती थी हिमालय के ॐ गुँजन से,
देव भूमि में देवों के स्तुति वंदन से ।
और हर्षित होती स्वामी-गांधी के उपदेशों से,
संत-महात्मा नानक-मुहम्मद के संदेशों से ।
सत्य-अहिंसा के पथ पर लहराती थी सादी चुनरिया को,
चलो मातृभूमि बुला रही आज सीमा पर लहरा के चुनरी केशरिया को।
रंग जाती थी वन-उपवन की हरियाली में,
रंग-बिरंगे फूलों की पत्ती-पत्ती डाली-डाली में।
और जल क्रीड़ा करती हिन्द महासागर की छाती में,
गंगा-जमुना कृष्णा-कावेरी झेलम की पानी में।
किसानों के खेतों में दौड़कर लहराती थी हरी चुनरिया को,
चलो मातृभूमि बुला रही आज सीमा पर लहरा के चुनरी केशरिया को।
सजती थी हिमालय का ऊंचा मुकुट लगा के,
श्रृंगार उत्तर भारत का पश्चिम का आँचल फैला के।
और पूरब का झंडा करधनी मध्य भारत का पहन के,
पैजनिया पहनती दक्षिण का क्षन-क्षन क्षन के।
प्रेम भूमि पर नृत्य करके लहराती थी लाली चुनरिया को।
चलो मातृभूमि बुला रही आज सीमा पर लहरा के चुनरी केशरिया को।
चलो मातृभूमि बुला रही आज सीमा पर लहरा के चुनरी केशरिया को।
-: दाता राम नायक “DR”