चुटकी में चाँद
मुझे आज भी याद है बचपन के वो दिन
दादी-नानी की कहानीओं में चाँद, तारों व जादुई लोक की दुनिया
किस तरह से जी उठती थी
कभी-कभी तो दिल करता है कि काश
उस पल को जी पाती, खेल पाती उन चांद-तारों से टहल पाती उस दुनिया में
और फिर आ पहुंची हूँ उम्र की इस दहलीज पर, जहां कहानियों का बस घोड़ा और राजकुमार बचा है,
पर दिल में अभी तक एक बच्चा शैतानियां करता है, कुलांचे भरता है, अब भी जुगनुओं को पकड़ना चाहता है, तितलीयों के पीछे भागता है और बरसात में भीगना चाहता है,
जो इन्द्रधनुष के कंगन चाहता है,
बहुत सी चीजें पीछे छूट गयी पर हसरत आज भी आबाद है, हां देखो इसलिए मेरी चुटकी में चाँद है