“चीख उठते पहाड़”
“चीख उठते पहाड़”
बारूद की बू से आज
चीख उठते हैं पहाड़,
काँप उठती रूहें उसकी
डरते हैं झाड़-झंखाड़।
प्रकृति के आरम्भ से ही
पहाड़ था मानव का साथी,
कुत्ता घोड़ा बैल सहित
साथ रहता था कभी हाथी।
“चीख उठते पहाड़”
बारूद की बू से आज
चीख उठते हैं पहाड़,
काँप उठती रूहें उसकी
डरते हैं झाड़-झंखाड़।
प्रकृति के आरम्भ से ही
पहाड़ था मानव का साथी,
कुत्ता घोड़ा बैल सहित
साथ रहता था कभी हाथी।