चिरयइन की चहक, मिट्टी की महक
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चिरयइन की चहक, मिट्टी की महक
मैं हूं एक किसान, मात्रभूमि मिली मुझे उपहार।
मिट्टी की सौंधी -सौंधी खुशबू,मन हरती है बार- बार।।
इस मिट्टी में जन्म लिया,करता हूं प्रणाम बारम्बार।
भारत मां का हूं ऋणी,ताउम्र रहूंगा क़र्ज़दार।।
मात्रभूमि से करता प्रेम,सर्वस्य लुटा दूंगा मैं, मैं हूं मां भारती का लाल।
अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दूं, नहीं चलने दूंगा उनकी चाल।।
मां ने पिलाया है स्वतंत्रता का अमृत , बोलता हूं भारत माता की जय।
जीते जी नहीं स्वीकार करूंगा, मैं पराजय ।।
मां भारती के आंगन में,बसुधैब कुटुम्बकम की होती खेती यहां पर।
अनेकता में एकता की संस्कृति सजती है, हर भारतीय के हृदय पर।।
कन्या कुमारी से कश्मीर तक, मानवता होती सुशोभित।
गंगा, जमुना और सरस्वती में वहता है कलकल कर अमृत।।
कृषि करों और ऋषि बनों, है संस्कृति यहां की।
ऋषि,मुनि, वीर, वीरांगनाओ की जन्म और कर्म भूमि जहां की।।
स्वतंत्रता सेनानी के जज्बें को ,करते हम सलाम।
युगों- युगों तक, शहीदों की शाहादत को करेगा ,हर भारत वासी प्रणाम।।
भारत मां की आन -बान और शान के खातिर ,बापू जी ने तज दिए थे प्राण।
“तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा “भगत सिंह के थे ये वान।।
खून का आखरी कतरा आएं भारत मां के काम,बोलते हुए त्याग दिये थे इंद्रा गांधी ने प्राण।
भारत का बच्चा-बच्चा आंतकवादियों से करता है ध्राण।।
भारत मां की मिट्टी से तिलक कर ,करते हैं स्वतंत्रता सेनानीयों का सम्मान।
नहीं झुकने देंगे तिरंगा,हम हैं हिन्दुस्तान की संतान।।
कफ़न बने हमारा तिरंगा झंडा,हर जांबाज देशभक्त का है ये सपना।
“भारत देश है सोने की चिड़िया ”
भारत देश है अपना।।
जय भारत,जय भारत, जय भारत,हर भारतीय का है ये कहना।
जियो और जीने दो की संस्कृति यहां की, जन मानस कहता,हिंसा परमो धर्मी।।
विभा जैन (ओज्स)
इंदौर (मध्यप्रदेश)