*चिंता और चिता*
चिंता अथाह जिंदगी से विराग है
चिंता तुम्हारी ही चिता की आग है
न सोच तूँ ये दुनिया खाक होगी
ये तेरी देह भी एक दिन राख होगी
चिंता अथाह जिंदगी से विराग है
चिंता तुम्हारी………
रिश्ते-नाते सब खोखले हो रहे हैं
जज़्बात आधुनिकता में खो रहे हैं
चिंता अथाह जिंदगी से विराग है
चिंता तुम्हारी………..
दौलत ईमान पर हावी हो चुकी
इंसानियत रूतबों में ही खो चुकी
चिंता अथाह जिंदगी से विराग है
चिंता तुम्हारी………..
अपनों को अपनों से परेशानी है
तेरी-मेरी नहीं घर-घर की कहानी है
चिंतन अथाह जिंदगी से विराग है
चिंता तुम्हारी……….
‘V9द’ क्यों झगड़ता अपने मन से
सच्च है कौन बच पाया है कफ़न से
चिंता अथाह जिंदगी से विराग है
चिंता तुम्हारी………….
स्वरचित
V9द चौहान