‘चाह’
हाथ में हाथ हो, चाँदनी रात हो।
नाथ से रात में, प्रेम की बात हो।
सोचती मैं रहूँ, साथ छूटे नहीं।
हों यहाँ संग में, दूर हों या कहीं ।।
याद आती रही, जान जाती रही।
प्रीत तेरे लिए, मैं बिछाती रही।
ईश से मैं करूँ, एक ही प्रार्थना।
साथ तेरा रहे, मैं करूँ याचना।।
सामने तू रहे, मैं निहारूँ तुझे।
दौड़ मैं आ पड़ूँ, तू पुकारे मुझे।
साँस तेरे लिए, आस तेरे लिए।
जिस्म तेरे लिए, जान तेरे लिए।।
आ चलें सैर को, शांत से स्थान में।
एक तू एक मैं, सृष्टि के यान में।
मैं तुझे थाम लूँ, तू मुझे थाम ले।
मैं तुझे जान लूँ, तू मुझे जान ले।।
-गोदाम्बरी नेगी