“चाहत का घर”
“चाहत का घर”
इंसानी आत्मा में होता है
चाहत का बसेरा,
नर हो नारी
निकाल नहीं सकते कभी
चाहत को अपनी आत्मा से..।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
“चाहत का घर”
इंसानी आत्मा में होता है
चाहत का बसेरा,
नर हो नारी
निकाल नहीं सकते कभी
चाहत को अपनी आत्मा से..।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति