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17 Mar 2021 · 1 min read

***चाहते हो गर शु*** कविता

**चाहते हो गर शुकून**
चल पड़ो उन राहों पर।
“अहंकार” जहां दिखे नहीं।
पथ वही है सच्चा मित्रों।
“परोपकार” जहां रुके नहीं।।
**चाहते हो गर शुकून**
“”चिंतन “”में सृजन का बीज हो।
“”जीवन”” में न कभी खीज हो।
घर परिजन को मानते अपना।
“जीव ” सकल सबके लिए अजीज हो।
**चाहतें गर हो शुकून**

शेष बाद में लिखूंगा””निरंतर जारी रहेगा——- ।
राजेश व्यास अनुनय

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 282 Views
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