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2 May 2024 · 1 min read

चाहता बहुत कुछ

चाहता बहुत कुछ देखूं मैं
चाहता बहुत कुछ पाऊं
चाहता भ्रमर की भांति सदा
मैं भी गुनगुनगुन गाऊं

चाहता विहग बन उड़ूं और
मैं दूर-दूर तक जाऊं
संदेश शांति का दुनिया के
सब देशों तक पहुंचाऊं

चाहता कभी नगराज बनूं
मैं नदियां नयी बहाऊं
पशुपति की पावन सेवा में
मैं अपनी आयु बिताऊं

चाहता कभी मैं बनूं सुमन
सारी दुनिया महकाऊं
कुछ परोपकार करके ही
मैं इस जगती से जाऊं

चाहता कभी सैनिक बनकर
सेना का मान बढ़ाऊं
भारतमाता की सेवा में
मैं अपना शीश चढ़ाऊं

फ़ुरसत में बैठे-बैठे मैं
क्या करके कीर्ति कमाऊं
मैं प्रगति-शिखर पर मित्रों
खुद को कैसे पहुंचाऊं?

रच खेल-खेल में तुकबंदी
सोचा जब किसे सुनाऊं
आभासी मित्र अनेकों अब
क्यों इन्हें न अभी पढ़ाऊं ?

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Language: Hindi
50 Views
Books from महेश चन्द्र त्रिपाठी
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