चांदनी में बैठते हैं।
आ चल चांद की चाँदनी में बैठते है।
तेरी जुल्फों की शायबानी में बैठते है।।1।।
तुम्हें क्या पता तुम क्या हो मेरे लिए।
तुमको खुदा की निशानी में देखते है।।2।।
तुम मदद करके जताते नहीं यूँ कभी।
तुम्हारा अंदाज मेहरबानी में देखते है।।3।।
खुदा नें खुद तराशा है तुम्हें हाथों से।
कारीगरी तेरी हूरें जवानी में देखते है।।4।।
तेरा इबादत ए चेहरा बड़ा ही सुर्ख है।
खुदाई चमक हम पेशानी में देखते है।।5।।
तजुर्बा है बड़ी चीज यूँ हर काम का।
जहां का हुनर दादी नानी में देखते है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ